देसा म्हे देस हरियाणा जित दूध दही का खाणाः ललित बतरा

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Kurukshetra University
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मीडिया चौपाल में हरियाणा मानव अधिकार आयोग के चैयरमेन ललित बतरा ने हरियाणवी बोली, रहन-सहन, खानपान पर की खुलकर बात
कुरुक्षेत्र (विक्रम सिंह )।
 देसा म्हे देस हरियाणा जित दूध दही का खाणा ऐसा है हमारा हरियाणा। हरियाणा की बोली सबसे मीठी है। यहां का खान-पान और रहन-सहन सबसे सात्विक है। हरियाणा की बाजरे की खिचड़ी, रोटी, चूरमा, लस्सी सबसे निराली है। यह विचार हरियाणा मानव अधिकार आयोग के चैयरमेन ललित बतरा ने रत्नावली महोत्सव के दूसरे दिन जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा संचालित किए जा रहे मीडिया चौपाल में व्यक्त किए। संस्थान के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया के हरियाणवी भाषा, रहन-सहन व परिवेश को लेकर किए प्रश्नों का जवाब देते हुए मीडिया चौपाल में हरियाणा मानव अधिकार आयोग के चैयरमेन ललित बतरा ने हरियाणवी बोली, रहन-सहन, खान पर  खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि हरियाणवी बोली को बोलने में अलग ही मजा आता है। जबसे आईपीएल की कमेंट्री हरियाणवी भाषा में शुरू हुई है तब से आईपीएल देखने का मजा दोगुना हो गया है।
उन्होंने कहा कि जब वे न्यायाधीश के रूप में उनकी पोस्टिंग लोहारू में थी तो वहां पर उन्हें बाजरे की खिचड़ी और रोटी का खूब आनंद लिया। हरियाणा के प्रत्येक क्षेत्र का खान पान की दृष्टि से विशेष महत्व है। जैसे गोहाना की जलेबी, सोनीपत का घेवर, पलवल का पेडा सबका अलग जायका है। उन्होंने कहा कि उन्हें हरियाणवी बोली बहुत पसंद है। इसे बोलने और सुनने का अपना ही आनंद है। वे अच्छे से हरियाणवी बोली बोल सकते हैं और उसे समझ सकते हैं। अपनी सर्विस के दौरान उन्होंने हरियाणा के कई क्षेत्रों में सेवा की है जिस दौरान उन्हें हरियाणा की संस्कृति, लोक परिधान, परिवेश, खानपान व बोली को जानने का अवसर प्राप्त हुआ।
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हरियाणवी बोली खड़ी है लेकिन मीठी है: प्रो. दीप्ति धर्माणी

रत्नावली महोत्सव के दूसरे दिन जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा संचालित किए जा रहे मीडिया चौपाल में चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय भिवानी की कुलपति प्रो. दीप्ति धर्माणी ने कहा कि हरियाणवी बोली खड़ी है लेकिन मीठी है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने हरियाणवी बोली को भाषा के रूप में स्थापित करने का बीड़ा उठाया है। रत्नावली समारोह के माध्यम से हरियाणवी लोक संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जा रही है। रत्नावली समारोह किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यही कारण है युवा कलाकारों को आगे बढ़ने के लिए बड़ा मंच मिल रहा है।

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